भारत सरकार द्वारा लाए गए चार नए लेबर कोड देश के संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के कर्मचारियों को प्रभावित करेंगे। ये कानून, चाहे आप सैलरी पाने वाले कर्मचारी हों, कॉन्ट्रैक्ट पर हों, पार्ट-टाइम काम करते हों, या डिजिटल प्लेटफॉर्म (गिग/प्लेटफॉर्म वर्कर) के जरिए काम करते हों, आपकी कमाई, नौकरी की शर्तों, फायदों और अधिकारों पर सीधा असर डालेंगे। हालांकि, इन कोड्स के आने के साथ ही बढ़ी हुई ग्रेच्युटी और घटी हुई इन-हैंड सैलरी को लेकर बहस तेज हो गई है।
चार नए लेबर कोड
सरकार ने मौजूदा 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को समाहित करके चार प्रमुख कोड लागू किए हैं:
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कोड ऑन वेजेज, 2019
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इंडस्ट्रियल रिलेशन्स कोड 2020
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कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी 2020
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ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड ग्रेच्युटी के नियमों में बड़े बदलाव
नए लेबर कोड का सबसे बड़ा प्रभाव ग्रेच्युटी (Gratuity) और सैलरी के ढांचे पर पड़ेगा।
1. बेसिक पे का पुनर्गठन (Restructuring)
नए नियमों के अनुसार, बेसिक पे और डीए (DA) अलाउंस मिलकर कर्मचारी की कुल सैलरी का कम से कम 50% होना चाहिए।
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ज्यादा ग्रेच्युटी: चूंकि ग्रेच्युटी पूरी तरह से बेसिक पे पर कैलकुलेट होती है, इस पुनर्गठन से इस्तीफा, रिटायरमेंट या टर्मिनेशन के समय कर्मचारी को अपने आप ज्यादा ग्रेच्युटी पेआउट मिलेगा। यानी, आज ज्यादा बेसिक सैलरी का मतलब है भविष्य में ज्यादा ग्रेच्युटी बेनिफिट।
2. एलिजिबिलिटी में कमी
पहले, ग्रेच्युटी सिर्फ 5 साल की लगातार सर्विस के बाद ही मिलती थी, जिससे शॉर्ट-टर्म कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले लाखों वर्कर बाहर हो जाते थे।
3. कवरेज का विस्तार
अब तक, ग्रेच्युटी प्रोटेक्शन ज्यादातर औपचारिक रूप से काम करने वाले परमानेंट स्टाफ तक ही सीमित था। नई व्यवस्था में, फिक्स्ड टर्म स्टाफ, कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले वर्कर, प्लेटफॉर्म वर्कर और गिग वर्कर भी सोशल सिक्योरिटी के दायरे में आ गए हैं। इससे भारत के वर्कफोर्स का एक बहुत बड़ा हिस्सा रिटायरमेंट से जुड़ी सिक्योरिटी की ओर पहला कदम बढ़ाएगा।
क्या घट जाएगी इन-हैंड सैलरी?
यही वह मुख्य बिंदु है जहां सैलरी कट की बहस तेज होती है।
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वेतन संरचना: बदले हुए वेज स्ट्रक्चर के तहत, बेसिक पे को कुल सीटीसी (CTC) का कम से कम आधा होना चाहिए, जिससे अलाउंस कम हो जाएंगे।
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बढ़ा हुआ डिडक्शन: प्रोविडेंट फंड (PF) और दूसरे कानूनी कंट्रीब्यूशन (जो बेसिक पे के प्रतिशत पर कैलकुलेट होते हैं) अपने आप बढ़ जाएंगे।
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निष्कर्ष: भले ही किसी एम्प्लॉई का टोटल CTC (कंपनी को लागत) न बदला हो, मंथली डिडक्शन बढ़ने से उनकी इन-हैंड सैलरी (हाथ में आने वाली सैलरी) कम हो सकती है।
यह असर उन कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा दिखेगा जिनका सैलरी स्ट्रक्चर पहले से ही कम बेसिक पे और भारी अलाउंस पर आधारित था। हालांकि, यह दीर्घकालिक बचत और बुढ़ापे में बेहतर फाइनेंशियल स्टेबिलिटी सुनिश्चित करेगा।